कबीर दास की शिक्षाओं का वर्णन
कबीर भक्ति के निर्गुण धारा के प्रवर्तक थे | वे न तो एक धर्मज्ञानी थे और न ही दार्शनिक | वे तो एक ऐसे शिक्षक थे जिसमें हिंदू धर्म और इस्लाम दोनों के रूढियों की कटु आलोचना करने का साहस था | कबीर के मुख्य उपदेश निम्नलिखित हैं -
1- कबीर ने ईश्वर की एकता पर बल दिया | उन्होंने सर्वशक्तिमान ईश्वर को राम, हरि, गोविंद, अल्लाह, साईं, साहब आदि अनेक नामों से संबोधित किया | उनका विचार था कि ईश्वर एक है चाहे उसे राम कहा जाए अथवा रहीम |
2- कबीर ने ईश्वर की अनन्य भक्ति पर बल दिया | उन्होंने भक्ति मार्ग को ज्ञान मार्ग एवं कर्म मार्ग से श्रेष्ट बताया | उनका विचार था कि भक्ति के बिना धर्म , धर्म नहीं और त्याग-तपस्या सब निरर्थक हैं |
3- कबीर ने ईश्वर के प्रेम में डूबकर अपने अहम भाव को नष्ट कर देने और ईश्वर को अपना सब कुछ समर्पित कर देने पर बल दिया | उनका विचार था कि मनुष्य को अपना सब कुछ ईश्वर को सौंप देना चाहिए | उसे सांसारिक विषयों को भूलकर ईश्वर की शरण में चले जाना चाहिए |
4- कबीर ने ईश्वर की प्राप्ति के लिए गुरु के महत्व पर अत्यधिक बल दिया | उनका विश्वास था कि ईश्वर को भक्ति और गुरु के पथ प्रदर्शन से ही प्राप्त किया जा सकता है | उनका विचार था कि बिना गुरु के मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती | गुरु ही शिष्य का मार्गदर्शन करता है और उसे अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है |
5- कबीर ने धार्मिक क्षेत्र में व्याप्त (फैला हुआ) पाखंडो तथा ब्राह्मणों का विरोध किया | हिंदू मुस्लिम दोनों की धर्म ग्रंथों के प्रति अंधभक्ति ,मूर्ति पूजा ,तीर्थ यात्रा ,तथा अन्य आडंबरओं की उन्होंने कटु आलोचना की धर्म में प्रविष्टि ब्राह्मणों पर प्रबल प्रहार करते हुए उन्होंने कहा कि यदि पत्थर पूजने से ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है , तो वह पहाड़ की पूजा करने को तैयार है |
6- कबीर ने केवल धार्मिक क्षेत्र में व्याप्त रूढ़ियों का ही विरोध नहीं किया अपितु तत्कालीन समाज में प्रचलित बुराइयों की भी कटु आलोचना की | उन्होंने सती प्रथा एवं पर्दा प्रथा का विरोध किया और ब्राह्मणों की जाति श्रेष्ठता को स्वीकार करने से इंकार कर दिया | उन्होंने ब्राह्मणों और शूद्रों की समानता पर बल दिया और जन्म की अपेक्षा कर्म को मनुष्य की श्रेष्ठता का आधार बताया |