डॉ. भीमराव अंबेडकर का हाशिए पर मौजूद समुदायों के अधिकारों की वकालत में योगदान
भूमिका:
भारत के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक इतिहास में डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर (1891-1956) का नाम अमर है। वे एक समाज सुधारक, न्यायविद, अर्थशास्त्री और भारत के संविधान निर्माता थे। अंबेडकर ने जीवनभर दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों और महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। उन्होंने जाति व्यवस्था, छुआछूत और सामाजिक भेदभाव के खिलाफ आवाज़ उठाई और वंचित वर्गों को समान अधिकार दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
जाति व्यवस्था और अंबेडकर का संघर्ष:
अंबेडकर स्वयं एक दलित (महार जाति) परिवार में जन्मे थे और जातिगत भेदभाव को अपने जीवन में भोगा था। समाज में व्याप्त छुआछूत और अपमानजनक व्यवहार ने उनके भीतर क्रांति की ज्वाला प्रज्वलित की। उन्होंने भारतीय समाज में जाति आधारित शोषण के खिलाफ विद्रोह किया और इस अन्यायपूर्ण व्यवस्था को खत्म करने का संकल्प लिया।
1. सामाजिक अधिकारों के लिए संघर्ष:
डॉ. अंबेडकर ने दलितों को समान अधिकार दिलाने के लिए विभिन्न आंदोलनों का नेतृत्व किया, जिनमें प्रमुख थे:
महाड़ सत्याग्रह (1927): महाराष्ट्र के महाड़ में सार्वजनिक चवदार तालाब पर दलितों को पानी पीने का अधिकार नहीं था। अंबेडकर ने इसके विरोध में सत्याग्रह किया और दलितों को सार्वजनिक सुविधाओं का उपयोग करने का अधिकार दिलाने की मांग की।
मनुस्मृति दहन (1927): महाड़ आंदोलन के दौरान ही अंबेडकर ने हिंदू धर्मग्रंथ 'मनुस्मृति' की प्रतियां जलाकर इसका विरोध किया, क्योंकि यह ग्रंथ जातिवाद और भेदभाव को बढ़ावा देता था।
कालाराम मंदिर प्रवेश आंदोलन (1930): अंबेडकर ने नासिक के प्रसिद्ध कालाराम मंदिर में दलितों के प्रवेश के लिए आंदोलन चलाया, जिससे छुआछूत और धार्मिक भेदभाव के खिलाफ आवाज़ बुलंद हुई।
2. राजनीतिक अधिकारों के लिए संघर्ष:
डॉ. अंबेडकर का मानना था कि राजनीतिक सशक्तिकरण के बिना दलितों का उद्धार संभव नहीं है। उन्होंने इस उद्देश्य से कई महत्वपूर्ण कदम उठाए:
1930 का गोलमेज सम्मेलन: ब्रिटिश सरकार द्वारा आयोजित गोलमेज सम्मेलनों में अंबेडकर ने दलितों के लिए अलग निर्वाचक मंडल (Separate Electorate) की मांग की, ताकि वे अपने प्रतिनिधि चुन सकें।
पूना पैक्ट (1932): गांधीजी के विरोध के कारण अंबेडकर को मजबूर होकर पूना समझौता करना पड़ा, जिसमें दलितों को अलग निर्वाचक मंडल की बजाय आरक्षित सीटें दी गईं। हालांकि अंबेडकर इससे संतुष्ट नहीं थे, लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार किया।
स्वतंत्र लेबर पार्टी (1936): अंबेडकर ने दलितों के राजनीतिक हितों को सुरक्षित करने के लिए स्वतंत्र लेबर पार्टी की स्थापना की, जो बाद में शेड्यूल कास्ट फेडरेशन (SCF) में बदल गई।
3. संविधान निर्माण में योगदान:
अंबेडकर को भारतीय संविधान का प्रमुख निर्माता माना जाता है। उन्होंने संविधान सभा में वंचित वर्गों के अधिकारों की पुरजोर वकालत की। उनके प्रयासों से संविधान में निम्नलिखित प्रावधान शामिल किए गए:
अनुच्छेद 15: जाति, धर्म, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव पर प्रतिबंध।
अनुच्छेद 17: अस्पृश्यता का अंत।
अनुच्छेद 46: समाज के कमजोर वर्गों के शैक्षणिक और आर्थिक हितों की रक्षा।
अनुच्छेद 330 और 332: अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए लोकसभा और विधानसभाओं में आरक्षण।
अनुच्छेद 340: पिछड़े वर्गों की स्थिति सुधारने के लिए आयोग की स्थापना का प्रावधान।
4. शिक्षा के क्षेत्र में योगदान:
अंबेडकर का मानना था कि शिक्षा समाज में समानता लाने का सबसे सशक्त माध्यम है। उन्होंने दलितों और पिछड़ों को शिक्षित करने के लिए कई प्रयास किए:
बहिष्कृत हितकारिणी सभा (1924): यह संगठन दलितों की शिक्षा और सामाजिक सुधार के लिए काम करता था।
शिक्षा के अधिकार पर जोर: अंबेडकर ने अपने भाषणों में कहा कि "शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो"। उन्होंने दलितों को शिक्षा अपनाने के लिए प्रेरित किया।
सांस्कृतिक उत्थान: उन्होंने उच्च शिक्षा को महत्व दिया और समाज के हाशिए पर मौजूद समुदायों के बच्चों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए छात्रवृत्तियां प्रदान करने का समर्थन किया।
5. धर्म परिवर्तन और बौद्ध धर्म की ओर रुख:
अंबेडकर का मानना था कि हिंदू धर्म में रहते हुए दलितों को बराबरी का अधिकार नहीं मिल सकता। उन्होंने जीवन के अंतिम चरण में लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपनाया। उन्होंने धर्म परिवर्तन को सामाजिक क्रांति का माध्यम माना।
1956 का बौद्ध धर्म दीक्षा आंदोलन: 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाया। उनके साथ लाखों दलितों ने भी बौद्ध धर्म स्वीकार किया।
बौद्ध धर्म का प्रचार: अंबेडकर ने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार को सामाजिक परिवर्तन का हथियार बनाया और लोगों को जातिवाद की बेड़ियों से मुक्त होने का आह्वान किया।
6. महिलाओं के अधिकारों की वकालत:
अंबेडकर ने महिलाओं के अधिकारों के लिए भी संघर्ष किया। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा, रोजगार और समान अधिकारों का समर्थन किया।
हिंदू कोड बिल: अंबेडकर ने संसद में हिंदू कोड बिल पेश किया, जिसमें महिलाओं को संपत्ति में अधिकार, विवाह और तलाक में समानता जैसे प्रावधान थे। हालांकि, इसे पारित नहीं किया गया, जिससे वे बेहद निराश हुए।
महिलाओं की शिक्षा पर बल: अंबेडकर का मानना था कि एक शिक्षित महिला पूरे परिवार को शिक्षित कर सकती है।
निष्कर्ष:
डॉ. भीमराव अंबेडकर का योगदान भारतीय समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने वाला था। उन्होंने दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों और महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष किया और उन्हें समानता और सम्मान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अंबेडकर का विचार, उनका संघर्ष और उनकी दूरदृष्टि आज भी समाज में प्रेरणा का स्रोत है। उनका सपना था एक ऐसा समाज, जहां जाति, धर्म और लिंग के आधार पर कोई भेदभाव न हो और हर व्यक्ति को समान अधिकार मिले।