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अमर शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु: शहादत दिवस पर श्रद्धांजलि | Bhagat singh ki death kab hui thi

अमर शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु: शहादत दिवस पर श्रद्धांजलि



भूमिका

23 मार्च का दिन भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। यह वह दिन है जब भारत माता के तीन वीर सपूत—भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु—देश की स्वतंत्रता के लिए हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए। इन तीनों वीरों का बलिदान मात्र एक घटना नहीं थी, बल्कि यह भारत के स्वतंत्रता संग्राम में वह प्रज्वलित मशाल थी, जिसने पूरे देश में क्रांति की आग भड़का दी। उनकी शहादत न केवल युवाओं के लिए बल्कि पूरे समाज के लिए प्रेरणास्रोत बनी।

इस लेख में हम इन तीनों वीरों के जीवन, संघर्ष, बलिदान और उनके विचारों को विस्तार से प्रस्तुत करेंगे, ताकि उनकी अमर गाथा हमें सदैव प्रेरित करती रहे।


शहीद भगत सिंह का जीवन परिचय

भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को पंजाब के लायलपुर जिले (अब पाकिस्तान में) के बंगा गांव में हुआ था। उनके पिता किशन सिंह और चाचा अजीत सिंह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। भगत सिंह ने बचपन में ही अपने परिवार के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान को देखा, जिससे उनके मन में बचपन से ही अंग्रेजी शासन के प्रति विद्रोह की भावना पैदा हो गई।

शिक्षा और क्रांतिकारी चेतना

भगत सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव के स्कूल में प्राप्त की, लेकिन उनका झुकाव हमेशा स्वतंत्रता संग्राम की ओर रहा। जलियांवाला बाग हत्याकांड (13 अप्रैल 1919) ने उनके मन को झकझोर कर रख दिया। उन्होंने उन निहत्थे भारतीयों के नरसंहार को अपनी आंखों से देखा और तभी अंग्रेजी शासन को जड़ से उखाड़ फेंकने का प्रण लिया।

किशोरावस्था में ही उन्होंने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में भाग लिया, लेकिन चौरी-चौरा कांड के बाद गांधीजी द्वारा आंदोलन वापस लिए जाने से भगत सिंह को गहरा आघात लगा। उन्होंने अहिंसा के मार्ग को छोड़कर सशस्त्र क्रांति का मार्ग अपनाने का निश्चय किया।


शहीद सुखदेव का जीवन परिचय

सुखदेव का जन्म 15 मई 1907 को पंजाब के लुधियाना जिले के नौघरा गांव में हुआ था। उनके पिता रामलाल जी थे। सुखदेव का बचपन कठिनाइयों से भरा रहा, क्योंकि उनके पिता का देहांत बचपन में ही हो गया था। सुखदेव की परवरिश उनके ताऊ अचिंतराम जी ने की, जो स्वयं एक राष्ट्रभक्त थे।

क्रांतिकारी जीवन

सुखदेव बचपन से ही अन्याय के खिलाफ आवाज उठाते थे। उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज में पढ़ाई की, जहां उनकी मुलाकात भगत सिंह और राजगुरु से हुई। तीनों ने मिलकर 'हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन' (HSRA) की स्थापना में योगदान दिया। सुखदेव का मानना था कि भारत की स्वतंत्रता के लिए युवाओं को संगठित होना होगा।


शहीद राजगुरु का जीवन परिचय

राजगुरु का पूरा नाम शिवराम हरि राजगुरु था। उनका जन्म 24 अगस्त 1908 को महाराष्ट्र के पुणे जिले के खेड़ गांव में हुआ था। बचपन में ही उनके पिता का निधन हो गया था, जिसके बाद उनका पालन-पोषण उनकी मां ने किया। राजगुरु को बचपन से ही अन्याय और अत्याचार के खिलाफ गहरा आक्रोश था।

क्रांतिकारी गतिविधियां

राजगुरु बहुत ही साहसी और निर्भीक थे। उन्होंने भगत सिंह और सुखदेव के साथ मिलकर क्रांतिकारी गतिविधियों में बढ़-चढ़कर भाग लिया। उनकी निशानेबाजी में महारत थी। राजगुरु अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष के प्रबल समर्थक थे।


लाला लाजपत राय की मौत का बदला

30 अक्टूबर 1928 को साइमन कमीशन के विरोध में लाहौर में एक विशाल प्रदर्शन हुआ, जिसका नेतृत्व लाला लाजपत राय कर रहे थे। इस दौरान अंग्रेज पुलिस अधीक्षक जेम्स ए. स्कॉट ने प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज किया, जिसमें लाला लाजपत राय गंभीर रूप से घायल हो गए और कुछ दिनों बाद उनका निधन हो गया।

भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने लाला जी की मौत का बदला लेने की ठानी। 17 दिसंबर 1928 को इन तीनों वीरों ने मिलकर अंग्रेज पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स को गोली मार दी, जिसे वे स्कॉट समझ रहे थे। इस घटना ने अंग्रेजी हुकूमत को हिला दिया।


असेंबली बम कांड

8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली की केंद्रीय असेंबली में बम फेंका। उनका उद्देश्य किसी को घायल करना नहीं था, बल्कि अंग्रेजी शासन को संदेश देना था कि भारत की युवा शक्ति अब चुप नहीं बैठेगी। बम फेंकने के बाद वे वहीं खड़े रहे और गिरफ्तारी दे दी। उन्होंने कोर्ट में अपने विचारों को खुलकर रखा और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ आवाज बुलंद की।


फांसी की सजा और बलिदान

इस केस में अंग्रेजी सरकार ने भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई। 23 मार्च 1931 को लाहौर सेंट्रल जेल में तीनों को फांसी दी गई। फांसी के समय भगत सिंह सिर्फ 23 वर्ष के थे, सुखदेव 24 वर्ष के और राजगुरु मात्र 22 वर्ष के थे। तीनों वीर हंसते-हंसते "इंकलाब जिंदाबाद" और "साम्राज्यवाद मुर्दाबाद" के नारे लगाते हुए फांसी के फंदे को चूम लिया।


उनका योगदान और विचारधारा

भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की विचारधारा केवल स्वतंत्रता प्राप्ति तक सीमित नहीं थी। वे समाज में समानता, न्याय और शोषणमुक्त व्यवस्था की स्थापना चाहते थे। भगत सिंह समाजवादी विचारधारा के समर्थक थे। उनका मानना था कि केवल राजनीतिक स्वतंत्रता पर्याप्त नहीं है, बल्कि आर्थिक और सामाजिक समानता भी आवश्यक है।


प्रेरणा और विरासत

आज भी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु देश के युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं। उनके विचार, साहस और बलिदान हमें अन्याय के खिलाफ लड़ने और अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने की प्रेरणा देते हैं। उनकी शहादत ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी।


निष्कर्ष

भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का बलिदान भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। उनकी शहादत ने स्वतंत्रता आंदोलन को और तेज कर दिया। 23 मार्च का दिन हर भारतीय के लिए प्रेरणा का प्रतीक है। उनके बलिदान को हम नमन करते हैं और उनके सपनों का भारत बनाने का संकल्प लेते हैं।

शत-शत नमन उन वीर बलिदानियों को!

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