इसके साथ मत खेलना, यह अछूत है-
सतारा में आंबेडकर परिवार ने किसी तरह जीवन यापन का सहारा तो ढूंढ लिया, परंतु बच्चों के लिए समाज में घुलने मिलने की समस्या बड़ी हो गई. भीमराव के भाई-बहन अब तो अब तक यह जान चुके थे कि वह अछूत हैं और उन्हें समाज के लोग इज्जत नहीं देते.
लोग उनसे बचते हैं, उनकी छुई हुई चीज नहीं खा सकते. ब्राह्मण तो इतना परहेज करते हैं कि यदि उनकी साया भी छू जाए तो शिव शिव करते हुए फिर से स्नान करने के लिए भाग खड़े होते हैं.
भीमराव अभी छोटे थे. जब उन्होंने यह सब देखा तो उन्हें बड़ी हैरानी हुई. बचपन से ही भीमराव में चीजों को गहराई से देखने और जानने की इच्छा तीव्र थी. वे जब घर से बाहर निकलते तो सब और देखते और दौड़कर सब बच्चों के साथ घुलमिल जाना चाहते थे.
वे इस सच्चाई से अनजान थे कि जिस परिवार और जाति में उन्होंने जन्म लिया है, तो वह भारतीय समाज में अछूत है और उन्हें सब बच्चों के साथ हिल मिलकर खेलने तथा उन्हें दोस्त बनाने का अधिकार नहीं है.
वे नहीं जानते थे कि ऊंची जाति और नीची जाति क्या होती है, निम्न वण और उच्च वण क्या होता है.
जब वे बाहर होते और कोई बच्चा उन्हें दिखाई दे जाता उसकी ओर दौड़ पड़ते. वे उसके साथ खेलना चाहते थे परंतु जैसे ही वे बच्चे के पास पहुंचते और बच्चा हंसकर उनकी ओर आने को होता, तभी दो हाथ पीछे से उस बच्चे को उठा लेते थे और भीमराव के कान में आवाज पढ़ती थी," चल - चल यह भीमराव ठगे से देखते रह जाते. उनको लगता, जैसे किसी ने मुंह में जाते-जाते उनके हाथ से निवाला छीन लिया है.
कहीं बच्चों का झुंड खेल रहा होता और भीमराव दौड़कर खेल में शामिल होना चाहते तो कोई बड़ा बच्चा झट से आगे आता और कहता, " नहीं तू हमारे साथ नहीं खेल सकता, तू अछूत है. जा यहां से भाग.
भीमराव रोते हुए घर लौट आते. मां पूछती क्या हुआ भीम तू रो क्यों रहा है, तो वह मां से सिसकते हुए कहते, मां मुझे कोई अपने साथ नहीं खिलाता सब बच्चे मुझे भगा देते हैं कहते हैं तू अछूत है.
हां बेटा- मां भीमराव को सीने से लगाती हुई कहती, वे ठीक कहते हैं. हम अछूत हैं वह बड़ी जाति के बच्चे हैं तू उनके साथ खेलने की जिद क्यों करता है. क्यों जाता है तू वहां बेटा, तू अपनी बहनों और भाइयों के साथ खेल लिया कर.
सिसकते- सिसकते भीमराव चुप हो जाते और मां की गोद में सो जाते हैं.
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