Search Article

बाबा साहेब जी का जन्म और माता पिता | बाबा साहेब जी की जीवनी | 14 अप्रैल बाबा साहेब जन्म दिवस

जन्म और माता-पिता-

जन्म 14 अप्रैल, 1891 को मध्यप्रदेश के रत्नागिरी जिले में महू नामक स्थान पर हुआ था | महू इंदौर नगर के निकट है | उनके पिता का नाम राम जी राव था तथा माता का नाम भीमाबाई था | पिता सेना में सूबेदार थे | आंबेडकर अपने माता-पिता के चौदहवीं संतान थे | उनसे पहले जन्मे भाई बहनों में से केवल दो भाई और दो बहने जीवित थी, अन्य की मृत्यु हो चुकी थी | उनके एक भाई का नाम आनंदराव था, दूसरे का बसंतराव एक बहन का नाम मंजुला था और दूसरी का तुलसी | कहने के लिए तो पिता सूबेदार थे, परंतु उन्हें वेतन केवल ₹50 मासिक मिलता था | उन दिनों सेना में नौकरी की अवधि 15 वर्ष हुआ करती थी | 15 वर्ष तक सेना को अपनी सेवाएं देने के बाद रामजी राव सेवा मुक्त हो गए | अब उनके सामने रोजगार की समस्या थी | वे महू में सातारा आ गए | सतारा में वे बहुत दिनों तक रोजगार की तलाश में भटकते रहे ₹50 मासिक पर उन्हें एक कंपनी में चौकीदार का काम मिल गया |

पारिवारिक पृष्ठभूमि- Family Background

 बड़े जांबाज और प्रतापी नवरत्न प्रदान कर जिस जिले ने अपना नाम सार्थक किया, उस रत्नागिरी जिले में मंडनगण से 5 मील की दूरी पर आंबबड़े नाम का एक देहाती स्थित है | यही है आंबेडकर घराने का मूल गांव | इस घराने का कुलनाम है सकपाल, कुलदेवी है भवानी | कुलदेवी की पालकी रखने का सम्मान इसी महार घराने का था | गांव के वार्षिक उत्सव के अवसर पर उन्हें अपने गांव वालों में विशेष सम्मान प्राप्त होता था और उस परिवार को वह दिन बड़ा महत्वपूर्ण लगता था | भारत के सारे अस्पृश्य समाज में महार जाति मजबूत कद-काठी वाले जोरदार आवाजवाली, चमकीली चमड़ीवाले, गुण से बुद्धिमान और वृत्ति से लड़ाकू दिखाई देती है | समय का ध्यान रखते हुए सावधानी से बर्ताव करने वाली अगर कोई जाती है तो वह महारो की है | 

कुछ विद्वानों का कहना है कि महाराष्ट्र के मूलनिवासी महार ही थे उनके ही नाम पर इस राज्य को ' महाराष्ट्र ' नाम प्राप्त हुआ | कुछ लोग ' महार ' शब्द की व्युत्पत्ति इस तरह करते हैं-

दक्षिण भारत में राजनीति की सत्ता के लिए षड्यंत्र शुरू होने पर उन्होंने बड़ी होशियारी से उस उपेक्षित, लेकिन सुझारू महार जाति के साथ संबंध जोड़ लिये | ईस्ट इंडिया कंपनी की मुंबई सेना के लिए कंपनी सरकार ने महारो के दल बनाए थे |

उस समय बिहार के दस्यु और मद्रास राज्य की पेरिया दलित जातियों को लेकर उसी तरह सैनिक टुकड़ियों का गठन कंपनी सरकार ने किया था | 

आंबेडकर के पितामह का नाम मालोजी सकपाल था | वे एक सेवानिवृत्त फौजी थे | उनकी संतानों में थे मीराबाई नामक बेटी और रामजी नामक बेटा | दोनों की ही कुछ जानकारी प्राप्त होती है | मालोजी के तीन और बेटे थे; परंतु प्रतीक होता है कि सेना की नौकरी में बार-बार ए तबादला होने के कारण परिवार के साथ मालोजी का विषय संबंध नहीं रहा होगा | 

रामजी सकपाल भी सेना में भर्ती हो गए | पहले जवानों को फौजी छावनी में स्कूल द्वारा अनिवार्य शिक्षा देने का प्रबंध ईस्ट इंडिया कंपनी सरकार ने किया था | इसके अतिरिक्त फौजी सिपाहियों की संतानों के लिए दिन के स्कूल थे | उनके प्रौढ़ रिश्तेदारों के लिए भी रात के स्कूल थे |

ऐसे ही शिक्षा रामजी सकपाल को मिली थी | राम जी सकपाल जिस सैनिक टुकड़ी में शामिल थे, उसी में इत्तेफाक से सूबेदार मेजर धर्मा मुरबाड़कर का तबादला हुआ | मुरबाडकर भी महार परिवार के थे | वे ठाणे जिले के मुरबाड के निवासी थे | मुरबाड़कर का कुलनाम पंडित था | उस परिवार के सात भाई भी सेना में मेजर थे | स्वाभाविक ही उनका रहन-सहन अमीरी ठाट बाट का था | वे नाथ संप्रदाय के अनुयायी थे | उनके परिवार का वातावरण धार्मिक था | महार बस्ती और गांव में उनका घराना बड़ा इज्जतदार माना जाता था | 

आगे चलकर यह परिवार पनवेल के नजदीक उलवा बंदरगाह पर निवास करने चला गया | फिर कुछ दिनों बाद वह परिवार पनवेल जाकर बस गया | धर्माजी की बेटी भीमाबाई और राम जी सकपाल का विवाह वर्ष 1865 के दौरान संपन्न हुआ | विवाह के समय रामजी की उम्र लगभग 22 वर्ष थी और भीमाबाई की उम्र लगभग 13 वर्ष | भीमाबाई बड़ी बातूनी, स्वाभिमानी, हठीली और धर्म परायण महिला थी | उनका रंग गोरा था, आंखें बड़ी बड़ी और आकर्षक थी | बाल घुंघराले थे | ललाट चौड़ा था और नाक तनिक चपटी थी | विवाह के बाद भीमा की माँ ही उसका हाल-चाल पूछती रहती थी | परिवार के अन्य सदस्य रूठे ही रहते थे | इस बात से आहत होकर भीमाबाई ने दृढ़तापूर्वक कहा, अब मैं तभी मायके जाऊंगी जब जेवरों से भरी पूरी अमीरी प्राप्त कर लूंगी | रामजी सकपाल उधमी महत्वकांक्षी और स्वतंत्र वृत्ति के आदमी थे | वे क्रिकेट, फुटबॉल आदि खेलों में प्रवीण थे | उत्साह के साथ निरंतर उधम करने वाले पुरुष को सम्मान और संपत्ति प्राप्त होती है | रामजी के उधमिता, प्रवीणता और कर्तव्यपरायणता को देखकर सेना का एक अधिकारी उनसे काफी प्रभावित हुआ |

उसने रामजी की सिफारिश कर उन्हें पुणे के पंतोजी स्कूल में दाखिल करवा दिया | वहां अध्यापन के पेशे की शिक्षा लेते समय उन्हें तो वेतन मिलता था, उसमें से कुछ भाग वे पत्नी के लिए मुंबई भेज देते थे | उन दिनों उनकी सैनिक टुकड़ी मुंबई के निकट सांतासांताक्रूज़ में थी | भीमाजी जीविका चलाने के लिए कंकड़ पत्थर पसारने का कार्य किया करती थी | अपनी व्यवहारिक बुद्धि के कारण रूखी सूखी में ही प्रसन्न रहती थी | जिस समय राम जी की शिक्षा दीक्षा संभव हुई थी उस समय दलित शिक्षा की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी | रास्तों की सफाई, सिर पर मैला ढोना, मृत पशुओं का चमड़ा निकालना- इसी प्रकार के कार्य करके उन्हें अपने अस्तित्व को बनाए रखना पड़ता था | ऐसी दशा में स्कूल और शिक्षा की बात सोची भी नहीं जा सकती थी | राम जी का सौभाग्य था कि उन्हें शिक्षा की सुविधाएं मिली थी | उनके पिता जब सेना में थे तब कंपनी सरकार ने सेना की छावनीयों में स्कूल शुरू किए थे | इन स्कूलों में सैनिकों के बच्चों को अनिवार्य रूप से शिक्षा दी जाती थी | इसके अलावा, सैनिकों को भी शिक्षा दी जाती थी | इसी तरह के एक स्कूल में पढ़कर वह प्रवीण हुए थे | पुणे के पंतोजी स्कूल की परीक्षा में उत्तीर्ण होकर रामजी अध्यापक बने और धीरे-धीरे फौजी छावनी के स्कूल में प्रधानाध्यापक बन गए | उन्होंने प्रधानाध्यापक का कार्य लगभग 14 वर्षों तक किया | आखिर उनकी इस सेवा की कद्र कर उन्हें सूबेदार मेजर के ओहदे तक की पदोन्नति प्राप्त हुई | उनकी अध्यापन कला सराहनीय थी | शिक्षा के प्रति अपने कर्तव्यनिष्ठा, प्रेम और लगाव से उन्होंने यह सिद्ध किया कि दलित भी अच्छा अध्यापक बन सकता है | साथ ही भीमाबाई का प्रण, जो उन्होंने अपनी संपन्नता हेतु किया था, वह भी पूरा हो गया | उनके परिवार को अब काफी प्रतिष्ठा प्राप्त हो चुकी थी | 

सन् 1890 तक सूबेदार रामजी और भीमाबाई की 13 संतानें पैदा हुई | उनमें से बालाराम, गंगा, रामाबाई, आनंदराव, मंजुला, तुलसी जी जीवित रहे | शेष संताने बचपन में ही मर गई | इतने बच्चों की पैदाइश, आतिथ्य- सत्कार, कई व्रत उपवास, पूजा-अर्चना और चिकित्सा की व्यवस्था ना होने से

भीमाबाई की सेहत बिगड़ती गई | कई छावनियों में तबादला होने के बाद राम जी का स्थान मध्य प्रदेश के महू जिले की लश्करी छावनी में स्थिर हो गया |

 महू में एक असाधारण घटना घटी | राम जी के एक चाचा बैरागी हो गए थे, जिनका काफी समय तक पता ही नहीं था | इत्तफाक से एक बार वे साधु जत्थे के साथ महू आ गए और उन्होंने रामजी को आशीर्वाद दिया- अपने कर्तव्य से इतिहास पर चिरंतन छाप डालकर अपने वंश का नाम अमर करने वाला एक पुत्र तुम्हारे घर में पैदा होगा | 

यह आशीर्वाद सुनकर सूबेदार दंपत्ति को काफी प्रसन्नता हुई | दोनों धर्मपरायण और व्रत धारी थे | अपने घर कुलदीपक जैसा पुत्र हो, इसलिए दान, व्रत, उपासना, आराधना और धार्मिक कृत्यों की ओर उनका ध्यान बड़ी उत्कटता से बढ़ गया | साधना के अंत में संत का वरदान फलीभूत हुआ | 14 संतान के रूप में Dr. Bhim Rao Ambedkar Jii का जन्म हुआ |


अधिक जानकारी के लिए Website को Follow करे |

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.