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जानिए कैसे ब्रिटिश सरकार की बदौलत पढ़े बाबासाहेब | अंग्रेजों ने अछूतों को शिक्षा कैसे दिलाई | अछूतों की शिक्षा अंग्रेजी सरकार में हुई

अंग्रेजों ने अछूतों में शिक्षा की किरण पहुंचाई 

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी के दादा मालोजी सकपाल सेना में हवलदार ओहदे से रिटायर हुए थे. मालोजी राव की 4 संतानें हुईं जिनमें रामजी चौथी संतान थे. रामजी सकपाल भी सेना में भर्ती हो गए उस जमाने में जवानों की फौजी छावनी में सरकार द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी के निर्देशानुसार स्कूल खोले गए थे. वहां जवानों के बच्चों के लिए दिन में तथा बड़ों के लिए रात की स्कूल में पढ़ाई कराई जाती थी. ऐसी स्कूल में टीचर बनने के लिए पुणे में एक पंतोजी नॉर्मल स्कूल था. वहां से रामजी सकपाल ने डिप्लोमा किया और बाद में यहां टीचर बन गए. 
ऐसी ही आर्मी स्कूल में वह 14 साल तक हेडमास्टर रहे और सूबेदार मेजर की रैंक तक पहुंचे. ईस्ट इंडिया कंपनी की आर्मी में लड़के-लड़कियों के लिए प्राइमरी एजुकेशन फ्री, लेकिन जरूरी भी था. सभी को पढ़ाई करना जरूरी होगा, इस नियम से सैनिक व महार परिवारों को पढ़ने लिखने का अवसर मिल गया. जबकि बाहर समाज में जात-पात, छुआछूत व हिंदू धर्म के बंधनों के कारण अछूतों के लिए स्कूलों के दरवाजे बंद थे. 
यदि अंग्रेजों ने जात पात को नकार कर अछूतों के घर परिवारों में शिक्षा की या किरण नहीं पहुंचाई होती तो स्वयं बाबा साहेब का भी यह विराट विश्वरूप नहीं हो पाता और आज दलित, उपेक्षित व शोषित वर्ग पढ़-लिखकर इस खुशहाल हालत में नहीं होता. 
सूबेदार रामजी सकपाल जब आर्मी में जवान थे, उन्हीं दिनों रत्नागिरी के कोंकण इलाके के ही महार जाति के धर्मा मुरवाडकर सूबेदार मेजर थे, जो आर्थिक रूप से मजबूत थे. धर्मा जी की पहचान राम जी से हुई तो वह अपनी बेटी भीमाबाई के रिश्ते के लिए उचित लगे. सन् 1865 में 20 वर्ष के रामजी सकपाल 13 वर्ष की भीमाबाई का विवाह हुआ.
रामजी हर खेल में प्रवीण, होनहार व काफी प्रतिभाशाली थे. उनकी प्रतिभा को देखकर एक फौजी अफसर ने राम जी का पुणे के पंतोजी स्कूल में डिप्लोमा के लिए एडमिशन करा दिया. वहां इस इंडिया कंपनी की आर्मी स्कूलों के टीचर तैयार किए जाते थे. घर में आर्थिक तंगी रहती थी क्योंकि सैलरी बहुत कम मिलती थी और उसी में से मुंबई में अपनी पत्नी भीमाबाई को गुजारा भेजना पड़ता था. हालांकि पीहर पक्ष पैसा वाला था लेकिन यहां ससुराल में मजदूरी करने में भी कभी संकोच नहीं किया. राम जी की बहन मीराबाई थोड़ी विकलांग थी जो राम जी के परिवार के साथ ही रहती थी. पुणे के पंतोजी स्कूल से डिप्लोमा करने के बाद राम जी फौजी छावनी स्कूल में अध्यापक और बाद में प्रधानाध्यापक तक पहुंचे.
14 साल तक व प्रिंसिपल रहे और उनकी सराहनीय सेवाओं के कारण सूबेदार मेजर पद का प्रमोशन मिला. वह धार्मिक प्रवृत्ति के थे इनके ससुर नाथ परंपरा के अनुयाई व स्वयं का परिवार कबीरपंथी था. वह आडंबरों व व्यसनों से दूर रहते थे. आर्मी के अंदर इनकी लीडरशिप की काफी सराहना होती थी. परिवार बड़ा होने के कारण आर्थिक हालत ज़्यादाअच्छी नहीं थी इसलिए भीमाबाई ने भी आर्थिक तंगी को हालत में पूरा सहयोग किया.



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