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देशी रियासतों का भारत में विलय & रियासतों के विलय की आवश्यकता | देशी रियासत

देशी रियासतों का भारत में विलय & रियासतों के विलय की आवश्यकता 

1- आजादी से पहले भारत दो भागों में बांटा था- (1) ब्रिटिश भारत (2) देशी रियासतें . 

2- देशी रियासतों की कुल संख्या 565 थी .

3- देसी रियासतों पर राजाओं या नवाबों का शासन था .

4- हैदराबाद सर्वाधिक ( सबसे ज्यादा ) जनसंख्या वाली रियासत थी .

5- एक करोड़ 60 लाख जनसंख्या वाले इस हैदराबाद राज्य की लगभग 90% परसेंट जनसंख्या हिंदू धर्मावलंबी ( हिंदू को मारने वाले )थे . 

6- देशी रियासतों की कुल जनसंख्या लगभग 9 करोड़ 30 लाख थी . 

7- ब्रिटिश सरकार के साथ की गई संधियों ( मेल ) के फलस्वरूप देशी रियासतों को स्वायत्तता ( अपनी सरकार बनाने का अधिकार ) संबंधी अधिकार प्राप्त थे .

8- देशी रियासतों को बाहरी हमलों से सुरक्षा प्रदान करने का अधिकार ब्रिटिश सरकार के पास था .

9- उत्तराधिकार के संबंध में कोई विवाद होने की स्थिति में उस विवाद का निराकरण ब्रिटिश सरकार ही करती थी .

10- बड़े पैमाने पर कुशासन और आंतरिक गड़बड़ी की स्थिति में भी ब्रिटिश राज्यों के मामले में हस्तक्षेप कर सकती थी.


रियासतों के विलय की आवश्यकता

निम्न कारणों से रियासतों का भारत संघ में विलय आवश्यक समझा गया--

1. अराजकता ( अनुशासनहीनता ) और गड़बड़ी की आशंका- 15 अगस्त, 1947 के बाद रजवाड़े भारत या पाकिस्तान में से किसी में भी शामिल होने अथवा अपनी आजादी की घोषणा करने के लिए स्वतंत्र थे. राजा यदि 'आजादी' का सपना देखना शुरु कर देते तो इससे ना केवल भारत की एकता को आघात पहुँचता, बल्कि रजवाड़ों की प्रजा भी इसे पसंद नहीं करती. राजाओं की क्रूरता ने आम लोगों के मन में उनके प्रति घृणा उत्पन्न कर दी थी. जनविद्रोह से शांति और व्यवस्था गड़बड़ा जाती.

2. भारत की एकता और अस्तित्व को खतरा- भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के अनुसार इन राज्यों के ऊपर जो ब्रिटिश सरकार का नियंत्रण था वह समाप्त हो गया . उन्हें यह छूट दी गई कि वे चाहे तो अपने शासकों के 'व्यक्तिगत शासन' के अधीन रहें अतः भारत या पाकिस्तान में शामिल हो जाएं. देखा जाए तो यह भारत की एकता को भंग करने की साजिश थी . शीघ्र ही कई रियासतों ने स्वतंत्र रूप में बने रहने के इरादे व्यक्त कर दिया, जैसे कि त्रावणकोर, भोपाल और हैदराबाद . भोपाल के शासक ने तो जिन्ना से भी बातचीत शुरू कर दी थी . यदि अधिकांश राज्य अपने को स्वतंत्र घोषित कर देते तो देश की शक्ति और अस्तित्व को गहरा आघात पहुंचता . 

3. अधिकांश राज्यों में निरंकुश ( वश में ना रहने वाला ) और स्वेच्छाचारी राजतंत्र का अस्तित्व- हालांकि कई शासक अपनी उदारता के लिए प्रसिद्ध थे, पर कुल मिलाकर रजवाड़ों का शासन मनमाने ढंग से चला आ रहा था. रजवाड़ों को राजाओं की मर्जी पर छोड़ देने का मतलब था उनकी प्रजा को लोकतांत्रिक अधिकारों से वंचित रखना . 


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