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रामजी सकपाल रिटायर हुए : परिवार आर्थिक तंगी में

रामजी सकपाल रिटायर हुए : परिवार आर्थिक तंगी में

रामजी सकपाल रिटायर हुए : परिवार आर्थिक तंगी में

25 साल की नौकरी के बाद सन् 1894 में रामजी सूबेदार सेना से रिटायर हुए. उस समय भीम की उम्र दो ढाई साल थी. कुछ समय वह महू के आर्मी कैंप के क्वार्टर में ही रहे. बाद में वह अपने परिवार के साथ महाराष्ट्र के रत्नागिरी तहसील में अपने पैतृक गांव आंबाडवे के पास कापदापोली गांव में बस गए. इस गांव में बड़ी संख्या में रिटायर्ड महार सैनिक रहते थे जो नाथ व कबीरपंथी थे, गांव में संतों के भजनों, दोहो व वाणियों की हर

समय गूंज रहती थी. सन् 1894 के आसपास तक दापोली नगर परिषद के स्कूलों में अछूत बच्चों के एडमिशन पर पाबंदी थी. अछूत फौजी पेंशनरों ने इसके खिलाफ आवाज भी उठाई लेकिन जिला कलेक्टर व हिंदू समाज ने अनुमति नहीं दी. रामोजी को सिर्फ ₹50 पेंशन मिलती थी जिससे परिवार का गुजारा मुश्किल से चलता था. इधर बच्चों की पढ़ाई की भी चिंता थी, दापोली की पाठशाला में बच्चों का एडमिशन संभव नहीं था. आखिर वह सन् 1896 में दापोली से परिवार के साथ मुंबई आ गए. वहां से उन्होंने सेना के अफसरों को निवेदन पत्र भेजें, जिससे सतारा के पीडब्ल्यूडी(PWD) के दफ्तर में स्टोर कीपर की नौकरी मिल गई. वह परिवार सहित सतारा के महारवाड़ा के पास ही रहने लगे. उनकी 14 संतानों में से उस समय 5 ही जीवित थी, 3 पुत्र व 2 पुत्रियां. सबसे बड़े बालाराम, छोटा आनंदराव, मंजुला और तुलसी दो बहने थी.

भीम सबसे छोटा वह सबका लाड़ला था. बड़े बेटे बालाराम, बेटी मंजुला व तुलसी के विवाह हो चुके थे. बालाराम नौकरी के कारण पिता से दूर रहते थे. सतारा आने के कुछ ही दिनों बाद राम जी परिवार पर दुख और मुश्किलों का मानो पहाड़ टूट पड़ा. एक और राम जी का सतारा से गोरेगांव ट्रांसफर हो गया तो वहां चले गए और पीछे भीमाबाई बीमार पड़ गई. तबीयत ज्यादा खराब हुई तो रामजी सातारा आ गए. खूब इलाज करवाया लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ. आखिर 30 साल तक सुख दुख में साथ रहे भीमाबाई सारे परिवार को रोता बिलखता छोड़कर अप्रैल 1896 में चल बसी. उनके देहांत से परिवार में भारी कमी हो गई. 

भीम उस समय सिर्फ 6 साल का था वह अपनी मां को " बय " कहता था. भीमाबाई की समाधि सतारा में बनाई गई. भीमाबाई की मृत्यु से सारा परिवार अनाथ सा हो गया. कई दिनों तक बालक भीम अपनी मां को बार-बार याद कर रो पड़ता था. 

सबसे छोटा होने के कारण भीमराव को परिवार में सबका लाड़ प्यार मिला. मां के देहांत के बाद बुआ मीराबाई ने बच्चों के लिए मां की कमी नहीं खलने दी.

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