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अछूतों के लिए बंद थे स्कूल के दरवाजे | बाबा साहेब बचपन में कहा पढ़ते थे | बाबा साहेब बचपन में कौन से स्थान पर पढ़ाई करते थे

अछूतों के लिए बंद थे स्कूल के दरवाजे

अछूतों के लिए बंद थे स्कूल के दरवाजे

भीम बचपन से ही हष्ट पुष्ट, चंचल नटखट था. वह अन्य बालकों पर रौब मारता था और उन्हें पीटता भी था. उनके माता पिता अक्सर भीम की शिकायतें लेकर राम जी के पास आते थे. इस तरह आए दिन भीम की शैतानियो की शिकायतें माता पिता के पास पहुंचती थी, इससे रामजी सूबेदार तंग आ जाते थे. रामजी भीम को डांटते धमकाते थे लेकिन मारते नहीं थी. आखिर वह बच्चों का उज्जवल भविष्य चाहते थे लेकिन माता भीमाबाई अनुशासन सिखाने के लिए भीम की पिटाई कर देती थी. ऐसे समय में बुआ मीराबाई बचाती थी और लाड़ प्यार करती थी. वह कई बार पिटाई से बचने के लिए बुआ के पीछे छुप जाता था. पिता रामजी सूबेदार अपने बच्चों को केवल आध्यात्मिक व नैतिक शिक्षा तक ही सीमित नहीं रखना चाहते थे बल्कि उज्जवल भविष्य के लिए स्कूली व व्यावहारिक शिक्षा पर भी विशेष ध्यान देते थे. वह भीम को खूब पढ़ाना चाहते थे लेकिन हिंदू समाज के कड़े नियमों के अनुसार भीम के लिए शिक्षा के द्वार बंद थे. 

वहां सवर्ण हिंदुओं के बच्चों को स्कूल जाता देखकर भीम की भी स्कूल जाने की इच्छा होती थी इसके लिए भीम बार-बार पिताजी से जिद करता था लेकिन यह मुश्किल था. इसलिए रामजी बच्चों को घर पर ही पढ़ाया करते थे. दपोली में कुछ समय रहने के बाद जब वह सातारा आए तो वहां भी स्कूल में अछूतों का एडमिशन नहीं हो रहा था. इस घोर अपमान व अन्याय को भोगते हुए वह दुखी थे, मजबूर होकर एक दिन एक अंग्रेज आर्मी ऑफिसर के पास गए और निवेदन किया कि उन्होंने जीवन भर सेना में रहते हुए सरकार की सेवा की है और उनके ही बच्चों को ऐसे क्रूर बंधनों के कारण किसी स्कूल में एडमिशन नहीं मिल रहा है यह कैसी अमानवीय व्यवस्था है. आखिर अफसर ने सुनी और नवंबर 1900 में सतारा के आर्मी कैंप स्कूल में एडमिशन मिल गया. बड़ा भाई आनंदराव भी भीम के साथ ही स्कूल पढ़ने जाने लगा.

अछूतों के लिए बंद थे स्कूल के दरवाजे

भीमाबाई के देहांत के बाद घर परिवार को संभालने वाली कोई स्त्री नहीं थी. बुआ मीराबाई शारीरिक रूप से हल्की विकलांग थी वह भीवा को बहुत लाड़ प्यार करती थी, लेकिन विकलांगता के कारण सारे कामकाज व देखभाल नहीं कर पाती थी. मां के निधन के बाद आनंद व भीम का पालन पोषण उसकी बुआ मीराबाई ने हीं किया. वह थोड़ी कुबड़ी थी और उसके ससुराल वालों के व्यवहार से परेशान थी इसलिए मायके में छोटे भाई राम जी के परिवार के साथ ही रहती थी. वह परिवार को पालने में बहुत रुचि लेती थी और भीवा को लाड़ प्यार के साथ कठोरता से अनुशासन भी सिखाती थी. राम जी ने भी यह तय किया था कि पत्नी के निधन के बाद दूसरा विवाह नहीं करेंगे क्योंकि वह बच्चों को सौतेली मां नहीं देना चाहते थे. लेकिन 5 बच्चों को देखभाल पूरी तरह से नहीं होने के कारण आखिर जीजाबाई नाम की एक विधवा स्त्री से दूसरा विवाह किया, वह एक रिटायर्ड जमादार की बहन थी.

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