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भारत को बौद्धमय बनाना जरूरी है | bharat ko baudh banana jaruri hai - Flow Gyaan

नमस्कार दोस्तों Flow Gyaan Website में आप सबका स्वागत है. आप इस आर्टिकल में पढ़ेगें कि भारत को बौद्धमय बनाना क्यों जरूरी है. दलित, आदिवासी पिछड़े लोगों को बौद्ध की शरण में क्यों जाना जरूरी है.


भारत को बौद्धमय बनाना जरूरी है- बहुजन मसीहा कांशी राम जी ' बहुजन समाज पार्टी ' के संस्थापक कांशी राम जी अपने भाषणों से लोगों तक भारत के महापुरुषों के किए गए काम को पहुंचाने का काम किया. दलितों आदिवासी पिछड़े लोगों को सम्मान दिलाया.

मान्यवर कांशीराम जी ने भारत को बौद्धमय बनाने के लिए अपने विचार रखे-

कांशीराम जी कहते हैं कि पूना में मुझे लगभग 20 साल रहने का मौका मिला. महाराष्ट्र में जो हमारे महापुरुषों द्वारा 1848 से लेकर 1956 तक 108 साल लंबा अटूट संघर्ष हुआ, उस संघर्ष को 20 सालों में जानने का मौका मिला. 1848 से 1956 तक जो संघर्ष हुआ वो छुआछूत के खिलाफ संघर्ष हुआ. उस समय शूद्र और अतिशूद्र समाज के लोगों को पढ़ने लिखने का मौका नहीं दिया गया उसके खिलाफ संघर्ष हुआ. कांशीराम जी कहते हैं कि मुझे इस बात का एहसास हुआ कि 1848 से लेकर 1956 तक महामना ज्योतिबा राव फुले, छत्रपति शाहूजी महाराज और बाबा साहेब आंबेडकर की देखरेख में जो संघर्ष हुआ, उस संघर्ष को समझकर मुझे भी ऐसा लगा कि ये जो संघर्ष के कारण शूद्र और अतिशूद्र की बात देश भर में बढ़ी है. यह बात आगे बढ़ती रहनी चाहिए. पीछे नहीं हटनी चाहिए.

पूना के साथियों द्वारा मुझे जानकारी मिली कि हर साल 1 जनवरी को बाबा साहेब अंबेडकर इस जगह ( कोरेगांव में ) श्रद्धांजलि अर्पित करने आया करते थे. भीमा कोरेगांव में बना स्तंभ ( हमारे समाज के भाई जो एक संघर्ष के दौरान शहीद हुए उनकी याद में बना स्तंभ ) के ऊपर लिखा हुआ है उस वक्त बिना कुछ परेशानी के आसानी से पढ़ने का मौका मिला. उस वक्त इस बीते हुए इतिहास के बारे में मुझे जाने का मौका मिला.

महाराष्ट्र के कुछ महार भाई कहा करते थे की-

महाराष्ट्र के कुछ महार भाई कहा करते थे कि बाबा साहब कहते थे कि जाओ अपनी दीवारों पर लिख दो कि हमें इस देश का शासक बनना है. बाबासाहेब की असली चाहत थी कि जिन लोगों में मैं पैदा हुआ हूं वह इस देश का शासक होने चाहिए उनका इस देश पर शासन होना चाहिए.

काशीराम- मैं महार भाई की बस्तियों में जाता था, वह ज्यादातर लोग झोपड़ी में रहते थे. फिर मैंने सोचा कि ऐसा लगता तो नहीं है, क्योंकि झोपड़ी में दीवारें तो होती ही नहीं है. 

क्या ऐसा हो सकता है? लगता तो मुश्किल है, क्या ये झोपड़ी में रहने वाले लोग उठकर खड़े होंगे और बाबासाहेब आंबेडकर की चाहत को पूरा करेंगे.

मान्यवर कांशी राम जी कहते हैं कि मुझे खुद लगता था कि ऐसा हो नहीं सकता, काम मुश्किल है. लेकिन मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए कि यह नहीं हो सकता क्योंकि कहने वाले ( बाबा साहेब ) की चाहत मुझे कुछ ज्यादा नजर आती है. बाबासाहेब कि यह चाहत कभी खत्म नहीं होनी चाहिए.

बाबा साहेब आंबेडकर जी ने 1936 में कहा था की-

डॉक्टर बाबासाहेब अंबेडकर जी ने 1936 में कहा था कि मैं हिंदू धर्म में पैदा तो हो गया हूं लेकिन हिंदू धर्म में मरूंगा नहीं. उन्होंने 1956 में हिन्दू धर्म को छोड़ा और बौद्ध धर्म को अपनाया. उस वक्त महाराष्ट्र में 5 लाख लोग बुद्धिस्ट बने. बाबा साहेब जी ने उस वक्त यह भी कहा था कि मुझे इस देश को बौद्धमय बनाना है. अपनी दूसरी चाहत को बाबासाहेब अंबेडकर जी ने 5 लाख बुद्धिस्ट भाइयों के सामने रखा कि, भारत देश को बौद्धमय बनाना है.

बाबा साहेब जी की विचारधारा कामयाब होऊ शकत नाही-

काशीराम- जब मैं आप लोगों के बीच आया हूं और पीछे मुड़कर देखता हूं कि जो बाबासाहेब आंबेडकर जि की चाहत थी कि जिस समाज में मैं पैदा हुआ हूं उस समाज के लोगों को इस भारत देश का शासक बनना है और वह आज कहां है. उस समय मुझे घबराहट होती थी कि यह सब कैसे होगा. महार समाज के भाइयों का बच्चा बच्चा कहता है, बाबा साहेब जी की विचारधारा तो सही है पर कामयाब हो सकती नहीं. जब मैं उनके झोपड़े को देखता था और सोचता था कि हमारे महार समाज के भाई लोग अगर बाबा साहेब की बात को अपने झोपड़ो पर लिख लिया तो पता नहीं मनुवादी सरकारें इनके झोपड़े कब उठा दे.

जब मेरे अंदर यह चाहत पैदा हुई थी कि बाबासाहेब की यह विचारधारा कामयाब हो सकती है.

महाराष्ट्र में आज ' होऊ शकत नाही ' की जो लहर चल रही है, उसको हमें बंद करना होगा. क्योंकि आज बहुत कुछ करने के बाद जब मुझे लगता है कि बाबासाहेब अंबेडकर जी की विचारधारा कामयाब हो सकती है. मैं इसे पूरा करके रहूंगा. इसलिए मैं महाराष्ट्र में आकर होऊ शकत नाहि की लहर को रोकने की कोशिश कर रहा हूं.

बाबासाहेब अंबेडकर की दूसरी चाहत भारत देश को बौद्धमय बनाना है-

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी की दूसरी चाहत थी कि भारत देश को बौद्धों का देश बनाया जाय. 

कांशीराम- हमारी भी चाहत है कि भारत देश को इंसानियत के रास्ते पर चलाना है, मनुवाद को मिटाना है और मानवतावादी को इस देश में लाना है. मानतावादी को लाने के लिए भारत को बौद्धमय बनाना जरूरी है. लेकिन असलियत क्या है ? कांशीराम जी के समय भारत देश की आबादी आज 100 करोड़ है लेकिन आज लोगों की संख्या एक करोड़ से 32 लाख कम है. 

कब हम भारत को बौद्धमय बना पाएंगे. कब हम इंसान और इंसानियत का बोलबाला कर पाएंगे. काम मुश्किल है, लेकिन मुश्किल काम को आसान करना मुश्किल कामों को पूरा करने के लिए अगर इंसान की चाहत सच्ची है तो सही रास्ते निकल आते हैं.

यह मेरी जिंदगी का तजुर्बा है, जो मैं इसी पुणे में यह सीख कर गया हूं कि अगर तमन्ना सही है, सच्ची है तो मुश्किल से मुश्किल रास्ते निकल आते हैं. अगर तमन्ना सही नहीं है बनावटी है चलती फिरती है तो बढ़िया से बढ़िया बहाने निकल आते हैं.

बहुजन समाज सिर्फ और सिर्फ बहाना ढूंढता रहता है-


कांशीराम जी- मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि जो लोग यह कहते हैं कि ये " होऊ शकत नाही " यह भी एक बहाना है. जो लोग ऐसा बहाना बनाते हैं, वो अगर अपनी तमन्ना सही करें, जिस तरह से मुझे कुछ रास्ते मिले हैं उस तरह से इनको भी रास्ते मिल सकते हैं. क्योंकि मैं एक अनजान व्यक्ति था, ये तो जानकार लोग हैं. यहां पर कई लोगों ने अपनी जानकारी के बारे में बताया काफी जानकारी है इन लोगों को और बहुत से लोग जानकार हैं. 

कांशीराम जी- मेरा मानना है कि अगर जानकार लोग सही तमन्ना पैदा कर ले तो उनको रास्ते आसानी से मिल जाने चाहिए. इसलिए साथियों इस मौके पर जब हम अपने शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए यहां पहुंचे हैं और मुझे सुनने के लिए लाखों लोग भारी संख्या में इकट्ठे हुए है. आप सभी इकट्ठे हुए लोगों से अपील करूंगा कि जो लोग बाबासाहेब आंबेडकर की चाहत को पूरा करना चाहते हैं, 

ऐसे चाहतमंद लोगों से मैं अपील करूंगा कि बहाने ढूंढने छोड़ो और सही चाहत पैदा करके रास्ते निकाल लो क्योंकि तमन्ना सही है तो रास्ते मिल जाते हैं.

कांशीराम जी- मैं आप लोगों के साथ हूं. जो रास्ते मैंने ढूंढे हैं उन पर चलकर हम काफी आगे बढ़ सकते हैं, लेकिन मंजिल तक पहुंचने के लिए अगर कुछ और रास्ता ढूंढने पड़े तो हम लोग मिल-जुल कर ढूंढ सकते हैं. इसलिए साथियों जो आज महाराष्ट्र में हमारे नेताओं ने हमारे समाज के जन-जन में यह लहर पैदा कर दी है, कि यह काम " होऊ शकत नाहि " इस " होऊ शकत नाहि " की लहर को रोकने में आप लोग सहयोग दें. हम लोग मिल-जुल कर " होऊ शकत नाहि " लहर को रोकेंगे और " होऊ शकत है "

हम इसे पूरा करेंगे. ऐसी लहर पैदा करने की कोशिश करेंगे.

जय भीम, जय भारत






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