Search Article

भारत में जातिवाद छुआछूत

नमस्कार दोस्तों आपको इस आर्टिकल में जाति व छुआछूत के संबंध में पढ़ने को मिलेगा और आप यह जानेंगे कि छुआछूत कितना भयंकर वायरस है. जो एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति से कैसे दूर रखता है/था.

आजादी के 75 साल तो हो गए, लेकिन आज भी गांव और शहरों में दलितों पर जातिगत अत्याचार व यौन शोषण होता रहता है. इसका एक ही कारण है " जातिवाद "

भारत में जातिवाद छुआछूत

हिंदू समाज में जातिगत छुआछूत-

आप सभी को हिंदू समाज में 4 वर्ण के बारे में तो पता ही होगा. कैसे शूद्रों को वर्णों में ' जातिवाद ' जात-पात में बांट रखा था/है.

चार वर्ण- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र.

शुद्र का मतलब अछूत ( जो छूने लायक नहीं ) आज हम जानेंगे कि शूद्रों को कैसे हिंदू समाज में प्रताड़ित किया जाता था/है, उन्हें समाज से कैसे अलग रखा जाता था/है. हिंदू समाज में चार वर्ण के आधार पर ब्राह्मण अपने आपको सर्वशक्तिमान व श्रैष्ठ बताता है. और शूद्रों को नीच, अछूत, बेकार बताता है.

हिंदू समाज में शूद्रों को " अछूत " के समान व्यक्त कर दिया. और शूद्रों को काम-काज भी बता दिया कि तुम एक अछूत हो, तुम सिर्फ हमारी सेवा के लिए ही जन्म लिया है. हमारे घर का मैला, मरी हुई गाय आदि को दूर ले जा कर फेंक देना है. और अगर किसी शूद्र ने काम के लिए मना कर दिया तो उसे जानवर से भी बदतर मौत या सजा मिलती थी. और साथ ही साथ शूद्रों को पढ़ने से वंचित रखा जाता था. क्योंकि अगर शूद्र पढ़ लिख गया तो, हमारी सेवा कौन करेगा. हमारी मरी हुई गाय कौन फेकने जाएगा.

भारत में जातिवाद छुआछूत


बाबासाहेब अंबेडकर लाइफ एंड मिशन में जातिगत छुआछूत से घाव/सडांध मार रहा था हिंदू समाज-

जातिगत छुआछूत भारत में इतना फैला हुआ है कि स्कूल के बाहर भी हिंदू समाज में जात-पात का घृणित व कुरूप चेहरा हर जगह व स्थान पर नजर आता था/है.

भीम का बचपन- 

जब कभी भीम अपनी मां के साथ बाजार में कपड़े खरीदने या कोई अन्य सामान खरीदने जाता था, तो दुकानदार दूर से ही कपड़ा फेंक कर दिखाता था. भीम को सामान तो मिल जाता था, लेकिन भीम के द्वारा दिए गए पैसे वो दुकानदार पैसे लेने से पहले पानी से धोता था. कुछ ऐसा था ' जातिवाद छुआछूत ' और आज के समय में भी कहीं-कहीं देखने को मिल जाता है. यह सब घटना को देखकर छोटा भीम के बालमन पर गहरा आघात किया. उन दिनों रामजी सूबेदार सतारा से कुछ दूर गोरेगांव में नौकरी करते थे.

भारत में जातिवाद छुआछूत

भीम बड़ा भाई और बहन पिताजी से मिलने पहुंचे- 

एक दिन भीम, बड़ा भाई आनंदराव और बहन पिताजी से मिलने के लिए जा रहे थे. मिलने से पहले ही भीम ने पिताजी को चिट्ठी लिख दी थी, कि फला रेलगाड़ी से वहां पहुंचेंगे. लेकिन अफसोस की बात यह है कि चिट्ठी पिताजी को समय पर नहीं मिल पायी.

तीनो भाई बहन " पाडली रेलवे स्टेशन " से रेलगाड़ी में बैठ गए और आगे " मसूर " रेलवे स्टेशन पर उतर गए. तीनों बच्चे पिताजी से मिलने के लिए खुश थे और इस आशा से रेलगाड़ी से उतरे की पिताजी उन्हें लेने के लिए स्टेशन पर तैयार खड़े होंगे लेकिन अफसोस की बात, की पिताजी को चिट्ठी नहीं मिलने के कारण वहां नहीं आ पाए. सभी पैसेंजर रेलवे स्टेशन से चले गए वहां सिर्फ तीनों बच्चे ही खड़े थे.

भारत में जातिवाद छुआछूत

स्टेशन मास्टर अछूत पता लगते ही दूर हटा-

रेलवे स्टेशन पर बच्चे अकेले खड़े थे. स्टेशन मास्टर बच्चों को खड़ा देखकर मास्टर ने पूछताछ की. तीनों के रंग-रूप व साफ-सुथरे कपड़े, अच्छा पहनावा को देखकर स्टेशन मास्टर को लगा कि बच्चे किसी संपन्न परिवार से होंगे. लेकिन जब यह मालूम पड़ा कि वह अछूत ' महार ' जाति से हैं तो, स्टेशन मास्टर 10 कदम पीछे हट गया. लेकिन स्टेशन मास्टर ने एक बैलगाड़ी वाले को मनवा दिया. की आप इन तीनों बच्चों को इनके स्थान पर पहुचा दिजिए.

भारत में जातिवाद छुआछूत

बैलगाड़ी वाले ने जात-पात दिखाई-

भीम के पिताजी तीनों बच्चों को स्टेशन पर लेने के लिए नहीं पहुंचे. क्योंकि रामजी को पता ही नहीं कि उनके बच्चे उनसे मिलने आ रहे हैं. क्योंकि चिट्ठी समय से नहीं मिल पाई थी.

भीम ने बैलगाड़ी किया जाने के लिए. बैलगाड़ी वाले ने उन बच्चों को बिठाया और चल दिया. बैलगाड़ी अभी मुश्किल से 10 गज ही चली होगी और बच्चों से बातचीत की शुरुआत में ही जाति पूछने पर 

भीम ने अपनी जाति ' महार ' बतायी तो वह गुस्से से आग बबूला हो गया. उसे लगा कि उसकी गाड़ी अछूत बच्चों के बैठने से अपवित्र हो गई. 

उसने बच्चों को गुस्से से ऐसे धक्का देकर बाहर फेंक दिया जैसे टोकरी से कूड़ा-करकट फेंका जाता है. रात का समय था, उस ग्रामीण इलाके में रास्ते में दीपक भी नहीं जल रहा था. चारों और रात का सन्नाटा था. बच्चे डर भी रहे थे कि अब क्या होगा. इसी दौरान भीम के बड़े भाई ने जब दोगुना किराया देने का लालच दिया तो बैलगाड़ी वाला मान गया. लेकिन बच्चों के साथ गाड़ी में नहीं बैठा क्योंकि गाड़ी में साथ में बैठता तो वह कहीं अछूत ना हो जाए. बाद में यह तय हुआ कि वह गाड़ी नहीं चलाएगा. अछूतों के लिए गाड़ी चलाना वह अपनी शान के खिलाफ समझता था. बैलगाड़ी वाला पैदल चलता रहा और भीम का बड़ा भाई आनंदराव गाड़ी चलाता रहा.

भारत में जातिवाद छुआछूत

जाति मालूम होने पर पानी पीने नहीं दिया-

भीम का बड़ा भाई आनंदराव गाड़ी चलाता रहा. गाड़ी से चलते चलते उन्हें प्यास लगी तो, आनंदराव ने गाड़ी रोकी. क्योंकि गर्मी का दिन था और गर्मी के कारण प्यास तीनों को लगी. प्यास के मारे मासूम बच्चों का बुरा हाल हो रहा था. रास्ते में कुछ जगह पानी मांगा तो जाती मालूम होने पर किसी ने पानी नहीं पिलाया. कुछ लोग गंदे पानी की ओर इशारा करते थे तो कुछ तिरस्कार कर पानी देने से मना करते हुए दुत्कार देते थे.

आधी रात तक बच्चों ने उस बैलगाड़ी में अपमानजनक सफर तय किया दूसरे दिन अधमरी हालत में वह अपने मुकाम पर पहुंचे.

मन को गहरा आघात करने वाली इस घटना की याद को बाबा साहब अपने भाषणों और सभाओं में कभी-कभी जाहिर करते थे. इस घटना से भीम के मन में अमानवीय समाज के खिलाफ गुस्सा व विद्रोह की भावना पैदा हुई.

उसके दिलो दिमाग पर गहरा असर पड़ा. यह कैसा सामान था जहां इंसान को पशुओं से भी बदतर समझा जाता है. एक ऐसे इंसान को पानी पिलाने की वजह दुत्कारा जाता है.








Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.