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मनुस्मृति में शूद्रों की स्थिति | 25 दिसम्बर " मनुस्मृति दहन दिवस " | 25 दिसम्बर 1927 मनुस्मृति दहन दिवस | शूद्रों कि औकात |

मनुस्मृति में शूद्रों की स्थिति

25 दिसम्बर " मनुस्मृति दहन दिवस "

आज इस संक्षिप्त आर्टिकल के माध्यम से मैं आपको बताना चाहूंगा कि मनुस्मृति में शूद्रों यानी इस भारत देश के मूलनिवासी SC ST OBC के बारे में क्या लिखा है शूद्रो के साथ कैसे बर्ताव किया जाता था |और शूद्रों को किन-किन चीजों से वंचित रखा जाता था और आपने शायद पहले कभी सुना होगा कि मनुस्मृति में महिलाओं को लेकर कुछ ऐसे शब्द लिखे गए हैं जो कहीं ना कहीं अंदर से झकझोर कर रख देते हैं और मनुवादी लोग अपनी गंदी मानसिकता को दर्शाते थे | लेकिन क्या कभी आप इस पर गौर किया है कि मनुस्मृति में जो शूद्रों के बारे में लिखा गया है और उनके साथ जो बर्ताव किया जाता था वह सही नहीं था कमेंट करके जरूर बताइएगा | मनुस्मृति के कुछ पेज को जब हमने पढ़ा तो मनुस्मृति में शूद्रों के बारे में वाहियात बातें लिखी जो यह ज्ञान देते हैं कि अगर कोई ब्राह्मण उपदेश दे रहा है और अगर कोई शूद्र उसे सुन ले तो ब्राह्मण मनुवादी उसके कान में गर्म तेल डलवा देते थे | ऐसी थी मनुस्मृति , उस समय के शूद्रों को सिर्फ ब्राह्मणों के मुताबिक उनकी बातों को मानकर जो भी काम कहा जाए तुरंत करना पड़ता था मना करने पर शूद्र को बुरी तरह मारा जाता था अगर शूद्र गलती से अपनी मनमर्जी का काम कर ले तो उस काम पर हमेशा के लिए बैन लगा दिया जाता था | और कड़ी से कड़ी और दिल दहला देने वाली सजा दी जाती थी | बाकी जाति के लोगों के लिए सजा तो मामूली होती थी या उन्हें छोड़ दिया जाता था | जब शूद्रों की बारी आती थी तो सजा इतनी भयानक होती थी जिसे शूद्रों की मौत निश्चित थी ऐसा था मनुस्मृति | मनुस्मृति शूद्रों को जानवर से बदतर मौत दी जाती थी यह मनुवादी इतने घटिया किस्म के इंसान थे कि इनके घर का कोई सा भी जानवर मर जाए तो शूद्र ही उठाकर ले जाएं यह मनुस्मृति में लिखा कानून था |

                                  श्लोक
                      पूजते विप्र सकल गुण हीना |
                      शूद्र न पूजिये ज्ञान प्रवीणा ||


अर्थ - ब्राह्मण चाहे कितना भी व्यभिचारी क्यों ना हो पूजा जाना चाहिए | क्योंकि ब्राह्मण दुनिया का देवता होता है | लेकिन नीची जाति का पढ़ा-लिखा शुद्र पूज़्नीय नहीं माना जाता है |

पढाई लिखाई से वंचित -

महिलाओं और शूद्रों को पढ़ने लिखने की इजाजत नहीं दी जाती थी | ब्राह्मण जानते थे कि ज्ञान इंसान की जीवन की सबसे बड़ी ताकत है | इसलिए उन्होंने शूद्र और स्त्री को शिक्षा का अधिकार नहीं दिया लेकिन जहां ज्ञान होता है वहां शक्ति होती है अन्याय के लिए आवाज उठाने के लिए हिम्मत होती है और वह किसी की गुलामी नहीं करता |

 
बाबा साहेब जी के द्वारा 25 दिसम्बर 1927 को मनुस्मृति दहन 

महामानव Dr. BR Ambedkar jii ने 25 दिसंबर 1927 को बाबा साहब और उनके समर्थकों ने जातिवाद और वर्णवाद को बनाए रखने वाली हिंदुओं की घटिया और भेदभाव से भरी किताब मनुस्मृति को सार्वजनिक रूप से जलाया था। मनुस्मृति ने दलितों और महिलाओं को इंसान का दर्जा तक नहीं दिया और उनके लिए जानवरों जैसी सज़ाओं का इंतज़ाम किया।
ये दुनिया की एकमात्र ऐसी धार्मिक किताब है जो जन्मजात गैर-बराबरी को जायज़ ठहराती है और उसको बनाए रखने के लिए खौफनाक सज़ाओं का भी प्रावधान करती है। लेकिन आज भी मनुवादी इस घटिया ग्रंथ को पूजते हैं। महाड़ सत्याग्रह के दौरान बाबा साहब और उनके समर्थकों ने मनुस्मृति को जलाया था जिसके बाद दुनिया भर के आंबेडकरवादी और समानता में यकीन रखने वाले लोग 25 दिसंबर को मनुस्मृति को जलाते हैं। इस घटिया किताब में कितनी नफरत भरी है |

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