भीमा कोरेगांव युद्ध की लड़ाई
• 1 जनवरी 1818 में एक युद्ध हुआ था | जिसमें 500 महार सैनिक थे और दूसरी तरफ 28000 पेशवो की विशाल फौज | इन दोनों के युद्धों में महारो की जीत हुई
महारो ने इस युद्ध में पेशवा को धूल चटा दि थी |
• महाराष्ट्र के पुणे जिले में स्थित पेरने गांव में भीमा कोरेगांव युद्ध के सैनिकों की स्मृति में रणस्तंभ का निर्माण किया गया जहां प्रत्येक वर्ष 1 जनवरी को इस युद्ध की वर्षगांठ मनाई जाती है |
भीमा कोरेगांव युद्ध क्या था?
• 1 जनवरी 1818 को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के 500 सैनिकों की एक छोटी कंपनी जिसमें ज्यादातर सैनिक महार समुदाय से थे | महार सैनिकों ने पेशवा शासक बाजीराव दिव् तीय की लगभग 28000 सैनिकों वाली सेना को लगभग 12 घंटे तक चले युद्ध में पराजित किया था |
• भीमा कोरेगांव के युद्ध में जीन महार सैनिकों ने लड़ते हुए वीरगति प्राप्त, की उनके सम्मान में वर्ष 1822 में भीमा नदी के किनारे काले पत्थरों से एक रणस्तंभ का निर्माण किया |
अस्मिता ( हैसियत ) की लड़ाई -
• वर्णव्यवस्था से बाहर माने गए और ' अस्पृश्यो ' यानी छुआछूत के साथ जो व्यवहार प्राचीन भारत में होता था | वही व्यवहार पेशवा शासकों ने महारो के साथ किया |
• यह लड़ाई पेशवाओं और महारों के बीच हुई थी | और यह पेशवाओं के जातिवाद घमंड के खिलाफ महारो के आत्मसम्मान की लड़ाई थी |
• इतिहासकारों के अनुसार नगर में प्रवेश करते वक्त महारो को अपनी कमर में झाड़ू बांधकर चलना होता था | कि उनके प्रदूषित और अपवित्र पैरों के निशान उनके पीछे झाडू से चले जाएं | उन्हें अपने गले में एक मिट्टी की हांडी भी लटकानी होती थी ताकि अस्पृश्यो के थूक से ब्राह्मण अपवित्र न हो जाए |
• ये सवर्णों के कुएं से पानी निकालने की भी सोच नहीं सकतें थे इनही सब कारणो से
अपने सम्मान के लिए महारो ने पेशवाओं को धूल चटा दी |