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भारत में नारी शिक्षा की स्थिति | Problem Of Female Education | स्त्री शिक्षा की समस्या

स्वतंत्रता भारत में स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में पर्याप्त प्रगति हुई है, लेकिन कुछ समस्या और कठिनाइयाँ स्त्री शिक्षा के मार्ग में बाधक बनी हुई है | इन समस्याओं का विवरण यह है-

1. सामाजिक कुप्रथा एवं अंधविश्वास- भारतीय समाज अनेक सामाजिक रूढ़ियों एवं अंधविश्वासों से ग्रस्त है | शिक्षा के अभाव में आज भी अधिकांश लोग प्राचीन परंपराओं एवं विचारों के कट्टर समर्थक हैं | उनका विचार है कि बालिकाओं को पढ़ने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उन्हें विवाह करके पति के घर ही जाना है | कुछ परिवारों में आज ही बाल विवाह और परदा प्रथा विद्यमान है, जिनके कारण स्त्री शिक्षा के प्रचार व प्रसार में बाधा उत्पन्न हो रही है |

2. जनसाधारण में शिक्षा की कमी- आज भी देश की कुल जनसंख्या का एक बड़ा भाग अशिक्षित है और शिक्षा के सामाजिक तथा सांस्कृतिक महत्व से अनभिज्ञ है | बहुत से लोग शिक्षा को निरर्थक और समय का खर्च समझते हैं | उनका विचार है कि शिक्षा केवल व्यावसायिक या राजनीतिक लाभ के लिए ही ग्रहण की जाती है | इस दृष्टि से केवल लड़कों को ही शिक्षित करना उचित है |

3. गरीबी और पिछड़ापन- वर्तमान समय में भारत की अधिकांश जनता गरीब है और उसका जीवन स्तर काफी पिछड़ा हुआ है | हमारे ग्रामीण क्षेत्र आज भी अविकसित दशा में है और वहां जीवन की अनिवार्य आवश्यकता भी सुलभ नहीं हो पाती है | धन की कमी के कारण वे अपने बालकों को ही शिक्षा नहीं दिला पाते, फिर बालिकाओं को विद्यालय भेजना तो एक असंभव बातें है |

4. संकीर्ण(विपत्ति) दृष्टिकोण- भारत में लोगों का स्त्रियों के प्रति बहुत संकीर्ण दृष्टिकोण पाया जाता है | अशिक्षा के कारण अधिकांश व्यक्ति यह कहते हैं कि स्त्रियों को केवल घर गृहस्ती का कार्यभार संभालना है, इसलिए अधिक पढ़ाने लिखाने की आवश्यकता नहीं है | शिक्षा प्राप्त करने पर स्त्रियां घर के काम कर सकेंगी | इस प्रकार के संकट दृष्टिकोण स्त्री शिक्षा के प्रसार में बाधक सिद्ध हो रही है |

5. शिक्षा के प्रति अनुचित दृष्टिकोण- भारत में अधिकांश लोग अपने बालकों को शिक्षा नौकरी प्राप्त करने के लिए उद्देश्य से दिलाते और लड़कियों को शिक्षा इसलिए देते हैं, जिससे उनका विवाह अच्छे परिवार में हो जाए | इस अनुचित दृष्टिकोण के कारण विवाह होते ही लड़कियों की पढ़ाई बंद करा दी जाती है |

6. शिक्षा में खर्च- शिक्षा संबंधी आंकड़ों के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि बालकों की उपेक्षा बालिकाओं की शिक्षा पर अधिक खर्च होता है | अधिकांश अभिभावकों के पास धन अभाव और पूर्व सुविधाओं के उपलब्ध ना होने के कारण अधिकांश छात्राएं निर्धारित अवधि से पूर्व ही पढ़ना छोड़ देती है इस कारण अनेक बालिकाएं समुचित शिक्षा प्राप्त करने से वंचित रह जाती हैं | 

7. पाठ्यक्रम का उपयुक्त ना होना- हमारे देश में शिक्षा के सभी स्तरों पर बालक बालिकाओं के लिए समान पाठ्यक्रम, पुस्तके और परीक्षाएं हैं | अधिकांश लोग इस प्रकार की शिक्षा के विरोधी हैं, क्योंकि उनका विचार है कि बालिकाओं के शारीरिक, मानसिक और सामाजिक आवश्यकताएं बालकों से भिन्न होती हैं | एकसमान पाठ्यक्रम बालिकाओं के लिए उपयुक्त नहीं होता इस ज्ञान प्रधान और पुस्तक प्रधान पाठ्यक्रम का बालिकाओं के वास्तविक जीवन से कोई संबंध नहीं होता |

8. बालिका विद्यालय तथा अध्यापकों की कमी- शिक्षा के सभी स्तरों पर हमारे देश में बालिका विद्यालयों की कमी है तथा देश में लगभग दो तिहाई ग्राम ऐसे हैं, जहां प्राथमिक शिक्षा के लिए ही कोई व्यवस्था नहीं है | एक तिहाई ग्रामों में से अधिकांश में बालिकाओं को बालकों के साथ ही प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करनी पड़ती है | यही स्थिति माध्यमिक और उच्च शिक्षा के स्तरों पर भी है | सह शिक्षा के कारण भी स्त्री शिक्षा के प्रसार में बाधा पहुंच रही है | इसी प्रकार प्रशिक्षित अध्यापकों की भी कमी है | 

9. दोषपूर्ण शैक्षिक प्रशासन- भारत में लगभग सभी राज्यों में स्त्री शिक्षा का प्रशासन पुरुष अधिकारियों के हाथ में है, परंतु स्त्री शिक्षा की समस्याओं से पूर्णतया अवगत ना होने कारण और अरुचि के कारण स्त्री शिक्षा का समुचित विकास नहीं हो पा रहा है |

10. सरकार की उदासीनता- सरकार स्त्री शिक्षा के प्रति उतनी जागरूक नहीं है, जितनी कि बालकों की शिक्षा के प्रति है | इस कारण ही स्त्री शिक्षा के विकास पर बहुत कम धन खर्च किया जा रहा है | सरकार की इस उपेक्षापूर्ण नीति के कारण स्त्री का वांछित(Desired) विकास नहीं हो पा रहा है |


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