महाड़ चवदार तालाब सत्याग्रह 20 मार्च 1927
अंबेडकर जी हिंदू समाज में भेदभाव व विषमता की खाई को पाटकर एकता व समानता का वातावरण पैदा करना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने बातचीत कर सुधार के प्रयास भी बहुत किए लेकिन रूढ़ीवादी लोगों की मानसिकता बदल नहीं पा रही थी, इसलिए यह तय किया कि अपने अधिकारों की प्राप्ति के लिए संघर्ष करना जरूरी है और सवर्ण हिंदुओं के खिलाफ सत्याग्रह का मार्ग अपनाया.मुंबई असेंबली में मेंबर बनने के बाद या अवसर मिला था. 1923 में महाराष्ट्र में समाज सुधारक सीतारमन बोले मुंबई काउंसिल में यह प्रस्ताव पास कराया था कि, सरकार द्वारा संचालित कोर्ट, स्कूल, हॉस्पिटल, ऑफिस, कुएं, तालाब, पनघट आदि स्थानों का उपयोग अछूत वर्ग को भी दिया जाए.
मुंबई सरकार ने इसके आदेश को भी निकाल दिए. इस आदेश के अनुसार 1924 में कोलाबा जिले के महाड़ गांव की नगर पालिका ने चवदार तालाब के पानी का उपयोग करने का अधिकार अछूतों को दिया. लेकिन सवर्ण हिंदुओं के डर के कारण लोग तालाब के पानी को छूने को भी हिम्मत नहीं कर पाते थे. हालांकि मुसलमान और ईसाई लोगों को अनुमति थी. सवर्ण हिंदुओं ने तय कर दिया कि किसी भी हालत में अछूतों को तालाब का पानी पीना तो दूर छूने तक नहीं देंगे.
कानून के बावजूद सामाजिक व्यवहार में अछूतों को सार्वजनिक स्थानों पर नहीं आने दिया जाता था. इसलिए डॉक्टर अंबेडकर ने पानी पीने के मानवीय अधिकार को हासिल करने के लिए तैयार की, जिससे लोगों को अपने मानवीय हक का एहसास हो सके. महाड़ इलाके में फौज से रिटायर महार जाति के लोग भी काफी रहते थे. जहां बसे हुए लोगों में सामाजिक चेतना भी थी.
महाड़ गांव भी बाबा साहेब का जाना पहचाना था उन्हें उम्मीद थी कि यहां फौज से रिटायर्ड अछूत समुदाय के लोग रहते हैं और यदि पानी के अधिकार के लिए कोई आंदोलन किया तो वह अनुशासन के साथ जरूर साथ देंगे. आखिर इस अधिकार को पाने के लिए कोलाबा जिले के प्रमुख नेताओं ने 19 व 20 मार्च 1927 को महाड़ में डॉक्टर अंबेडकर की अध्यक्षता में दलित जाति परिषद की ओर से एक सभा का आयोजन किया.
इसके लिए काफी प्रचार किया गया और महाराष्ट्र गुजरात से भी अछूत स्त्री-पुरुष महाड़ गांव पहुंचे. उस समय लगभग 5000 लोग इकट्ठा हुए थे. आयोजन में पानी की दिक्कत ना हो इसके लिए पहले से अछूतों ने ₹40 का पानी खरीद लिया.
महाड़ गांव के हिंदू देवता वीरेश्वर के नाम पर मन पंडाल बनवाया गया. लोगों में बड़ा उत्साह व जोश था. जब बाबासाहेब वहां पहुंचे तो उनका भव्य स्वागत किया गया. डॉक्टर अंबेडकर ने अपने भाषण में ऊंच नीच व जाति पाति के कारण हिंदुओं की ओर से सेना में अछूतों की भर्ती पर रोक के लिए ब्रिटिश सरकार की कड़ी आलोचना की. उन्होंने अछूत समाज को कहा, " इस धरती पर हमारा भी बराबर का हिस्सा व हक है इसलिए इसे पाने के लिए संघर्ष करो. हमेशा इस लाचारी व दयनीय दशा में नहीं रहना है. मरे पशुओं का मांसाहार बंद करो, सवर्णों का झूठा भोजन मत खाओ तथा हीनता की भावना से निकलकर अच्छा रहन-सहन रखो, खेती करो उघम करो. गरीबी व अभाव के जीवन से बाहर निकलो और ऐसा काम करो कि तुम्हारी संताने तुमसे अच्छा जीवन बिता सकें. और यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो मनुष्य के माता-पिता और पशुओं के नर मादा में कोई फर्क नहीं रहेगा. आपको अपने अधिकार पाने व आजादी कोई थाल में सजाकर नहीं देगा इसके लिए संघर्ष करना पड़ेगा. इस तरह डॉक्टर अंबेडकर जी ने अछूतों को अपने अधिकार व अपने जीवन स्तर में सुधार के लिए प्रेरित किया.