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बामण लोगों की कुटील नीति | बामण नीति | बामण की कुटील नीति |

बामण लोगों की कुटील नीति -

यह समझना कठिन है कि भारत के बामण के दिल दिमाग का निर्माण किस मसाले से हुआ और होता है ? बामण हमेशा मानवता का विरोधी रहा है . वह अपनी आदत को और अपनी संस्कृति में कुछ सुधार नहीं चाहता . वह हर मामले में अपना अखंड शासन चाहता है, और इस प्रवृति के लिए वह हमेशा भयानक षड्यंत्र रचता आया है . बामण कमजोर व गरीबों का तो निर्दय घातक है ही, अपने परम उपकारी को भी सीधी करवट बैठकर कुछ करने नहीं देता . 

अब यह बात आपकी समझ में बिल्कुल साफ आ गई है कि हिंदू धर्म यह हिंदू संस्कृति का अर्थ बामण धर्म या बामण संस्कृति हैं .

हिंदू और बामण दोनों पर्यायवाची शब्द है, बामण से भिन्न " हिंदू" का कोई दूसरा अर्थ नहीं . 

इस युग में महात्मा गांधी एक महान हिंदू धर्म के सेवक हुए है . उनके कार्यों से आभास मिलता था कि वह हिंदू धर्म के मानवता विहिन दोषों को दूर करना चाहते थे . लेकिन उनके नेतृत्व को ब्राह्मणों ने सिर्फ तभी तक चलने दिया जब तक शासन सत्ता हाथ में नहीं आई थी . बुद्धोपदिष्ट अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों पर चलने से गांधी जी को विश्व ख्याति( Fame) मिल गई और वह बुद्ध की भांति महापुरुष समझे जाने लगे थे . किंतु अपनी उस विमल कीर्ति की परवाह न करके हिंदू धर्म की सुरक्षा के लिए उन्होंने दुर्बल असहाय कमजोर अछूतों की विमुक्ति के विरुद्ध मरते दम तक भूख - हड़ताल की घोषणा करके अपनी कीर्ति की धवल (सफेद) चादर को धब्बेदार एवं अपने उजले चेहरे पर कलंक का टीका लगा लिया . उन्होंने गरीब अछूत को हिंदू दासता के चंगुल से निकलने नहीं दिया . ऐसे परम हिंदू हितैषी के महोपकारो का भी बामण ने क्या बदला दिया ?

30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे नाम के एक विद्वान ब्राह्मण ने उन्हें गोलियों का निशाना बनाया और एस हत्या को उसके मित्रों ने " पुण्य कार्य " कहकर अपनी गलियों और मोहल्लों में मिठाई बांटी . 

स्वामी दयानंद सरस्वती, जिन्हे सुधारको ने "महर्षि" की उपाधि से विभूषित किया, और जिन्होंने ईसाई और मुस्लिम धर्म के महा - प्रवाह में बहे जा रहे बामण धर्म के अनुयायियों के गुण-कर्म के एक नए आदर्श द्वारा सुरक्षित करके मृत्य हिंदू समाज को जीवित कर दिया . 

ऐसे महान उपकारी को भी बामण के विश्वासघात का शिकार होना पड़ा . चंद चांदी के टुकड़ों पर ईमान बेचने वाले एक ब्राह्मण ने दूध के साथ हलाहल विष पिलाकर महर्षि के महान जीवन का अंत कर दिया .

यह कोई नई बात नहीं है . प्राचीन समय से देखिए . महाराजा अशोक एक महाशक्तिशाली बौद्ध सम्राट थे . उन्होंने अपने फरमानों में अपने धर्म निरपेक्षता का ज्वलंत सबूत दिया था . उनके शिला-लेखो में " समण और बामण " दोनों शब्द अंकित पाए जाते हैं, जिसका अर्थ यह है कि सम्राट अशोक ने बौद्ध और बामण दोनों धर्मों के सम्मान की रक्षा की . 

सम्राट अशोक के शासन का आधार मानवता रहा . किंतु बामण को मानवता पसंद नहीं, वह बामण शासन चाहता है . सम्राट अशोक की मृत्यु के उपरांत उनके सातवीं पीढ़ी के पौत्र सम्राट वृहद्रथ को उनके बामण मंत्री पुष्यमित्र ने खुले दरबार में कत्ल करके अपना शुंग वंशीय राज्य कायम किया, और अपने राज्य में बौद्ध भिक्षुओं के सिरों को काटकर लाने वालों के लिए इनामों की घोषणा की तथा बोधगया में बोधि वृक्ष की जड़ों को काटकर भारत भूमि से बौद्ध धर्म का उन्मूलन कर दिया .

बौद्धों का उच्छेद हुआ और बामणी हुकूमत कायम हुई .

लेकिन देश आजाद न रह सका .

मुसलमानों के अधीन हो गया, मुसलमान पहले लुटेरों के रूप में आए और यहां के जवाहर और सोना लूट कर ले जाते रहे . फिर उन्होंने यहां की सुंदरियों स्त्रियों और खूबसूरत लड़कों का भी अपहरण किया . महमूद गजनवी ने सोमनाथ के मंदिर को तोड़ा और अपार संपत्ति लूटकर ले गया . 

हजारों भयभीत बामण पंडे पुजारी हाय हाय करके रह गए . किसी के बनाए कुछ ना बना धीरे-धीरे मुसलमान यहा के शासक हो गए . औरंगजेब जमाने में हिंदुओं पर होने वाला जोर जुल्म सीमा को पार कर गया . उसका मुकाबला पंजाब में सिख गुरु गोविंद सिंह ने और दखिन में शिवाजीराव ने किया . 

शिवाजी राव ने अपनी अनुपम वीरता से शक्तिशाली मुगल सम्राट औरंगजेब के छक्के छुड़ा दिये और मराठा प्रदेश को मुसलमानों की गुलामी से मुक्त करके वहां एक स्वतंत्र हिंदू राज्य कायम कर दिया तथा पेशवा बामणो को उस राज्य का प्रधान बनाया . ऐसे महान उपकारी को भी "भोसला शूद्र" कहकर ब्राह्मणों ने घोर अपमान किया और उनका राज्यअभिषेक करने से इंकार कर दिया यहां तक कि शिवाजी के गुरु रामदास और प्रधानमंत्री मोरोपंत पिंगले भी शिवाजी के राज्यअभिषेक के विरोधी थे . तब शिवाजीराव के हितैषियों ने काशी के पंडित घाघ भट्ट को धन से खरीद कर शिवाजी का राज्याभिषेक कराया और उन्हें छत्रपति शिवाजी राव बनाया . किंतु बामण इस अभिषेक से मन ही मन कुढ़ते रहे, और शिवाजी को मरने के बाद उन्होंने उनके सुपुत्र संभाजी की आंखें निकलवा कर शिवाजी की बामण शक्ति का यह प्रसाद दिया . 

बामण अपने विरोधी का विनाश करने के लिए क्रूरतम कामों के करने में भी नहीं हिचकता . कौटिल्य शास्त्र के लेखक चाणक्य ने एक सुंदरी कन्या को शैशव-काल से ही विष पिला-पिलाकर तरुणी( Young Girl) किया था . उसे खूब श्रंगार करके अपने विरोधी राजा पर्वतराज को भेंट किया . 

राजा ने सहर्ष इस सुंदरी को स्वीकार किया . किंतु इस "विषकन्या" के साथ संभोग करने से उसका विष राजा के शरीर में व्याप्त हो गया, और वह बीमार होकर मर गया .

बाबासाहेब डॉक्टर अंबेडकर की मृत्यु किसी "विषकन्या" के द्वारा तो नहीं हुई, किंतु उनकी मृत्यु अज्ञात अवश्य है .

बाबासाहेब बामण धर्म के प्रबल आलोचक थे, और बामण उनसे कुढ़ते और रूष्ट रहते थे . चाणक्य ने लिखा है - " विरोधियों के घरों में आग लगाओ, उनके खानों में जहर मिलाओ, और उनके बच्चों को प्रसाद के पेड़े में मकड़ी बंद कर के खिलाओ, उनके घरों में केकड़े, साप और विषैले कीड़े डालो और लुक छिप कर उनका विनाश करो इत्यादि





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